समझ नहीं आता , हंसु या रो लूँ
ख़ुशी इतनी दूर, उदासी क्यों गहराई
कुछ बोलने का समय, दिया किसीने कब
जिसका भी साथ चाहा, सब यूँ दूर चले गए
नशीब मेरा खाता, यूँ लगता है अब
उदासी जो गहराई चादर में लिपटा हुआ सा
किस से थोड़ी बातें, थोड़ी हंसी बाँट लू
अब हर किसी में तन्हाइ नजर आता है
मेरी दर्द भी तेरी तरह निकला,
इक़रार से डरकर, अपनी पहचान छुपा बैठा
हर वख्त सोचता कल हमारा होगा
इस उम्मीद में अश्रु बनना भी भूल गया
कुणाल