बंद दरवाजा खुली खिड़की, दिल के इस मन्दिर में,
ग़ैरों को रोका यहाँ, अपनों के लिए खुली है खिड़की,
हर उम्र की मोर पे, अपनों के लिए खुली है खिड़की,
हवा के झरोखे संग, हर ख़ुशियाँ दिल में समा जाए,
जीवन की इन धूप छाँव में, साथ निभाए ये मेरी ख़ुशी,
खुद में अकेला जी रहा, दिल की ख़ुशी ख़्वाब संग बसी,
ख़्वाबों भरे सुनहरे सपने, इसपे हक्क हो सिर्फ़ अपनों का,
अपना जो दिल के क़रीब, के लिए खुली है दिल खड़की,
कठोर नहीं मैं हृदय का कभी, पर मैंने झूठ कभी ना सही,
दिल का दरवाजा बंद किया, पर खुली रही दिल की खिड़की.
कुणाल कुमार