देखो सामने खड़ी कंकालों की बारात,
भूखे नंगों की सेना, खोकर अपना विवेक,
देख शासन की गुमान, जनता है परेशान,
ज़रूरतों की चाह लिए, दिल में भरी वेदना,
सत्य स्वयं घायल हुआ, गए जनता को भूल,
राजसी जीवन ठाठ लिए, ये नेता बड़े है ढीठ,
मूक बधिरों की जमात बने, जनता को वो भूल,
शासन की लोभ लिए, नेता सब होकर एक.
कुणाल कुमार