पावन पथ पे चल रहा, दिल में बसा कर प्रीत की रीत,
जान से प्यारी है, मुझे मेरी जीवन की ये प्यारी सी संगीत,
हँसता रहा दिल में बसाकर, उसे अपना याद बनाकर,
फिर ठिठक रोने लगा, क्योंकि हंसा तो लोग क्या कहेंगे,
काम नहीं है जीवन में, दूसरों का सदा खिंचे टांग,
लोगों के व्यंग सुन अब, पाक गए मेरे दोनो कान,
मुझसे मेरी ख़ुशी जो छीन, जी रहे है मज़े में लोग,
जी करता है आग लगा दूँ, उनकी ये ख़ुशी जला दूँ,
अपनी ख़ुशी लोगों के हाथ, उनके देखे हज़ारों सवाल,
आग लगा अगर दिया उन्हें, फिर लोग क्या कहेंगे मुझे,
अपनी चिंता थी नहीं, चिता से भी कोई शिकवा नहीं,
फिर ठिठक सा रुक जाता, थोड़ा सा जो थहम गया,
उसकी चिंता अपना बना, उसके स्मिता को दिल से लगा,
जो रोक अपने आवेश को, अकेले ही मैं जीने को चला.
कुणाल कुमार