इक अनजाना सफ़र सा, है जीवन मेरा वीरान,
सन्नाटे को चीरता, लक्ष्य की ओर बढ़ चला,
सफ़र पे निकला हूँ, खोजूँ इक हमसफ़र,
साथ निभाने की, हो जिसमें थोड़ी ललक,
चोर बन चुरा लू , मैं अपने सफ़र की हर लम्हे,
बाँट सकूँ मेरी ख़ुशी, बन तेरे सफ़र का हमसफ़र,
चाहत की कस्ती पे सवार, प्यार की दरिया करूँ पार,
हर थपेड़े को सह मैं हंस कर, जब तुम हो मेरे साथ.
कुणाल कुमार