कोई मुझे समझ ना पाए,
या समझ कर ना समझने की क़सम खाए,
मेरी इक छोटी से चाहत को,
अपने पैरो तले रौंद कर चली जाए,
दिल की निश्छलता ना समझ,
सिर्फ़ अपनी ही मन की चलाए,
उसके लिए मैं मात्र,
सिर्फ़ इक मनोरंजन का साधन होकर रह जाए,
क्या फ़रक पड़ता है,
मैं ख़ुस रहूँ या अपने ग़म में डूब कर रह जाऊँ,
इतना बढ़िया क़िस्मत तो मेरी थी नहीं,
क्यों तुझे चाहा जो तुम मेरी थी नहीं,
क़िस्मत का धनवान होता तो,
मेरे लिए तेरे दिल में प्यार होता,
कदमों का चलना तब साथ होता,
मन में तुम्हारे मेरा सिर्फ़ प्रवास होता.
कुणाल कुमार
Well written 👍
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