मैं अलबेला जी रहा अकेला, बसा खुद की इक दुनिया,
इस दुनिया का पात्र भी मैं, इक नयी कहानी लिखी मैंने,
इस कहानी का सार अनूठा, पर कहानी का हर पात्र हैं झूठा,
कल्पना की इस दुनिया में, सिर्फ़ एक सच हैं ये मेरी सच्चाई,
इक दिन वो आयीं, मेरी दुनिया के रौनक़ को लौटाई,
सतरंगी सपनो में खो, उसे अपनी मल्लिका जो बनाई,
मेरा बालक मन समझ ना पाया, कल्पना ना होती सच्चाई,
खुद से रुठ लिए उदास मन, जी रहा हूँ बिना अपनी ख़ुशी,
उम्मीद जो हैं मेरी टूटी, छूटी अब मेरे जीने की आस,
क्या करूँ तेरा मेरी ज़िंदगी, बचा ना अब जीने की चाह,
लिखने को तो बचा बहुत, पर दर्द से मेरी आँखे भर आई,
मेरे शब्द जैसे दूब से गए, मेरी आश्रुओ से भरे समंदर में,
ऊपर से सब ठीक लगे, दिखाने को अब हँसता हूँ मैं,
भीतर से टूट सा गया, ना बची मेरे दिल में कोई खुशी.
कुणाल कुमार
Wah..
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धन्याबाद
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