वो आएगी क्या, मेरी तनहाई की रौनक़ कभी लौटा पाएगी,
खुद पे यक़ीन अब ना रहा, पागलपन हैं ये क्या मेरी दीवानगी,
समझ अब कुछ ना आ रहा, भँवरे सा आसमाँ में मँडरा रहा,
लक्ष्य का कोई पता नहीं, फिर भी यादें में मैं दिन बिता रहा,
सोच में सिर्फ़ तेरी याद बसी, बची ना तेरे बिन जीने की आस,
क्या करूँ इस जीवन का, नहीं जीना अब होकर मुझे निराश,
ईश्वर पे विश्वास नहीं, क्यों मिलाया मुझे उससे जब उसका देना साथ नहीं,
जीवन संघर्ष पे अकेला जी रहा, फिर क्यों जगाई तुमने मेरे भीतर प्यार की चिंगारी,
इक सवाल का जबब ढूँड रहा, किसिसे कुछ पुछ ना सका,
ये सवाल मेरे समझ से परे, मेरे ज़िंदगी में वो आएगी क्या.
कुणाल कुमार