मेरी सफ़र का अंत, अब दिख रहा हैं मुझे,
कोरा काग़ज़ देख रहा, हाथ मेन स्याह लिए,
क्या अपने समवेदना को, अक्षर में पिरोता रहूँ,
या सारे संसार से, अपनी वेदना को मैं छिपा लूँ,
हर सुरुआत ना होता अनंत, मेरी कविताओं का भी हुआ अब अंत,
हर बोल अब निकले सिर्फ़ खुद के लिए, सोच मेरी हो गयी ख़ुदगर्ज़,
मेरी कविता ना हो सकी पूरी, जैसे मेरे बोल रह गए अधूरी,
शब्दों से बिचार की हुई दूरी, जैसी मेरी सपना रह गयी अधूरी,
माफ़ करना मेरे पाठक, मेरी पुस्तक ना होगी कभी पूरी,
जीवन के संघर्ष में अब, रह गयी मेरी सरी इक्षाए अधूरी.
कुणाल कुमार
par kyon
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मुझमें अब और दर्द सहने की, थोड़ी भी हिम्मत ना बचीं,
खुद को सर्द कर लिया मैंने, उनके अहसाश के थपेड़ों से,
सर्द मन से दिल के दर्द बयान कभी ना करते हैं मेरे दोस्तों,
लिखना क्या चीज़ हैं, मैंने सोचा क्यों ना मैं जीना ही छोड़ दूँ;
धुआँ वही से उठती हैं, जहां कभी आग लगी थी तुम सुन लो,
इस आग नें मेरी, जीवन जीने की चाहत को ही जला डाला.
Bye all Take care…
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