कौन हूँ मैं, क्या हैं इस दुनिया में मेरे होने का वजूद,
समझने की कोशिश लिए मन, अपनी ज़िंदगी जी रहा हूँ,
कोई तो मुझे समझाए, मेरे निश्चल मन को भाए,
मेरे दिल के पास आकर , अपना बन साथ निभाए,
मेरे वजूद का एहसास, मेरा बन मुझे बताए,
मुझे समझ मुझे, ज़िंदगी की सही राह दिखाए,
पर ये स्वप्न हैं मेरा, ना कोई अपना बन सके हैं मेरा,
अकेले अपने जीवन पथ पे, सिर्फ़ बढ़ते ही जाना मुझे,
मुझे बता मेरे जीवन का, क्या यही है जीवन उद्देश्य,
मैं कौन हूँ क्या कर्म हैं मेरा, बता अपना बन तू मेरे विवेक,
या खुद के ग़म को पीकर, बस उसे ढूँढता रह जाना,
जो बनकर रहे मेरी ख़ुशी, या बन मेरे जीवन का उद्देश्य.
कुणाल कुमार
Very thoughtful n nicely written
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धन्यवाद
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कोई भी इस दुनिया में अपने को पहचान पाया है कभी…..
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True
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