ज़िंदगी जीने के ख़ातिर, हूँ इस उधेड़ बुन में अब,
सच झूठ के दमन चक्र में उलझ, जीना भूल गया,
ख़ुशियाँ के लहरो पे, निकला प्यार कि कश्ती हो सवार,
पर अपनी नसीब हैं खोटी, जो छोड़ चली तुम अपने पथ,
मैं डूबा ग़म के सागर, बिरह की पीड़ा जो दिल लिए,
खीजने चला था ख़ुशी, ग़म के भँवर में फँस गया मैं बेचारा,
क्या कोई बच सकता है, बिरह के दमन चक्र से,
प्यार की राह में, बिरह भी सुख दे मुझे कभी कभी.
के.के.