प्यार का वो लमहा, जब साथ खो गए थे हम,
एक बनी थी सिल की धड़कन, क्या दिन वो थे मेरे,
क्या वो लमहा तुमने जिया, बिरह का सच जान कर?
मैंने तो दिल से प्यार किया, भूल सारे सच दिल से,
तुम्हें अपना बनाने का ठान दिल, हर बार पूछा मैं तुझसे,
क्या प्यार हैं मुझसे, सिर्फ़ ये बता दे तुम मुझको दिल से,
पर ना जाने क्या हठ थी तुममें, या प्यार नहीं था दिल में,
कभी तुमने अपना ना माना, ना कभी की प्यार तुम मुझसे,
फिर भी इस उम्मीद पे धड़क रहा दिल मेरा, कभी बनोगी तुम मेरा,
सह लूँगा प्यार की हर पीड़ा, जी रहा जीवन इसी उम्मीद में.
के.के.