क्यों ख़फ़ा हो तुम मुझसे, क्यों दिल तोड़ कर चली मेरा,
क्यों यू मह मोड़ चली, क्या यही है मेरे वफ़ा का सिला,
मेरी आँखे तरस गयी, दीदार को तेरी,
दिल टूट गया मेरा, इस इनकार ए तेरी,
तुम करती हो हर काम, काफ़ी सोच समझ कर,
क्यों ना दिया इक मौक़ा, मेरे प्यार को समझने का,
क्या तुम्हें लगता है, मेरा प्यार है इक छलावा,
पर तुम देख उतर दिल मेरे, हर कोने में तुम ही तुम हो,
मेरी ये मजबूरी है, सदा दिल से दुआ निकले तेरे लिए,
तेरी हर सोच को मेरे दिल ने, स्वीकार किया खुद से,
बस दर्द इतनी सी है दिल में, क्यों इनकार मिला सिर्फ़ मुझे,
मेरे प्यार की ख़ूबसूरती,क्यों ना दिखा क्या कभी तुझे.
के.के.