सबके अंदर बसता है, इक राम और रावण,
जीवन की सच्चाई समझ, अपना राम छोड़ रावण,
क्या हुआ वनवास मिली, मिले दर्द चौदह साल,
मर्यादा पुरशोत्तन बन, याद करे लोग राम का नाम,
कष्ट के बाद विजय हैं, विरह लिखी थी राम के नाम,
कुछ समय के विरह से बाद, राम को मिली उनकी ख़ुशी,
रावण को मिला छनिक सुख, ना जीत पाया सीता का दिल,
राम की तपस्या से मिली, बसी सीता सिर्फ़ उनके दिल,
कहता हैं ये मेरा मायूस दिल, आएगी ख़ुशी मेरी लौट इक दिन,
राम बन रहूँगा मैं, ना चाहिए मुझे छनिक रावण जैसी ख़ुशी.
के.के.
बढ़िया रचना 👌
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धन्यवाद…
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