तुझे चाहा दिल से,
ना समझा कभी अपने से अलग,
पर देखो तेरी ये ज़िद्द,
इकरार ना करने का हठ,
रोया मैं खुद में पर हँसी भी आई मुझे,
तेरे इस हठ का क्या करूँ मैं,
जान बनकर जान ले चली तुम,
शायद मेरी है ये नसीब पर मेरी याद में रहोगी तुम,
मुझपे कभी विश्वास ना था,
या ना थी भरोसा खुद पे,
क्यों डर थी इकरार करने में,
क्या खो देती तुम खुद को मुझमें,
अगर तेरा दिल खोता मुझमें,
ढूँढ लाता मैं खोज उसे,
ना कुछ होने देता तुझे,
जब तक तुम दिल से ना होती मेरी,
दर्द इस बात का हैं,
मेरे प्यार को ना मिली मंजिल,
अपना माना मैंने तुम्हें दिल से,
पर तेरे दिल में मुझे जगह ना मिली.
के.के.
Ci vorrebbe un traduttore…grazie.
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