क्यों टूट रहा हूँ मैं क्यों टूट रहा हैं मेरा ये दिल,
क्या चाहत में मेरी हैं कमी या तेरा साथ छूट रहा,
समझाने की कोशिश कर रहा इस बेचारे दिल को,
जीवन है क्षणिक ख़ुशी की उम्मीद ना रखो कभी दिल में,
हर कोई खोजे यहाँ खुद की मंजिल,
मैं भी जी रहा अपनी वीरान सी ज़िंदगी,
ज़रा सा टूट गया हूँ मैं सोचता क्यों जी रहा ये ज़िंदगी,
शायद मिलन की आस ही हैं मक़सद मेरे जीवन का,
जाने दो छोड़ो सब बेकार की बातें,
चलो करते हैं कुछ ऐसा की खिले पत्थर में फूल,
मुस्कुराहट चेहरे पे हो दिल में रहे ना कोई रंजिश,
कुछ तुम हंस लो थोड़ा कुछ मैं भी जी लूँ अपनी ज़िंदगी.
के.के.