कैसे समझ लेती हो मेरे दिल हर बात,
क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारे दिल के साथ,
पर इक बात समझ नहीं आयी मुझे कभी,
क्यों नहीं जान पाई तुम चाहत को मेरे,
क्या इतना ही समझा तुमने मुझे,
क्यों बौना कर दिया मेरे क़द को तुमने,
तेरे इकरार को खुद में समेट लेता मैं,
तुम नहीं चाहती तो इजहार नहीं करता कभी,
क्या कभी मैंने बोला किसी और को,
कितना प्यार है मेरे दिल में तेरे लिए,
काश तेरी समझ परिपक्व जो होती,
या सुनती कभी तुम अपने दिल की कही,
शायद तेरी समझ में थी कुछ कमी,
जो तुम ना समझ पाई मेरे दिल की कही,
या मेरी हैं समझ में हैं थोड़ी सी नादानी,
जो दिल लगा बैठा मैं इक नन्ही सी परी संग.
के.के.