हैं अजीब ये उलझन दूर जाने का दिल नही करता तुमसे,
पास रहकर बस मुझे देखते हैं रहना तेरी ख़ूबसूरती,
ना कुछ ज़्यादा हैं तम्मना मेरे इस दिल में,
बस यू ही तेरी ख़ूबसूरती निहारना है मेरी मंजिल,
तेरा साथ तो कभी नहीं मिलेगा मुझे,
ये समझ हैं मुझे पर मेरा दिल थोड़ा मजबूर,
बोल नहीं सकता क्यों हैं तेरा इंतज़ार,
पर बस ये इंतज़ार ही अब बन गयी मंजिल,
हर एक दिन और रात क्यों आता हैं मुझे ख़्वाब,
तेरी बाहों में समेटे हुए पता हूँ खुद को हर इक ख़्वाब में,
क्यों नींद मेरा चुराई क्यों चैन मेरी छीन गयी,
क्यों मिला तुझसे मैं क्यों खोया रहता हूँ हर घड़ी,
ये उलझन हैं अजीब नही चाहिए इसका कोई उत्तर,
अच्छा लगने लगा हैं ये उलझन जो बन गयी हैं मेरी नसीब.
के.के.