यों जी रहा हूँ, मैं अपनी उधार की ये ज़िंदगी,
ख़ुशी तो कही गुम गयी, पर जीना हैं ज़िंदगी,
मेरा सपना अब ना रहा अपना, खो कर ये समझा मैं,
खोने की आदत सी हो गयी, पाया ना कुछ खुद के लिए,
सच्चा मन क्यों ना समझे, अपना हैं ये नसीब,
भोलेपन में खो बैठा, चैन बेचारा ये दिल,
अपना समझ अपनाया उसे, पाया दिल के क़रीब,
अपना ना बनाया उसने, छोड़ गया रोता मेरा दिल,
ग़मों का साया आज, इतना क्यों लिए आज गहराई,
रोने का जी करता, पर अश्रु ने भी ना मेरा साथ निभाई,
किसे कहूँ ये हाल ए दिल, किसको मैं अपनी मजबूरी बताऊँ,
प्यार तो कर लिया ये दिल, लिए उधार का सपना नयनों में.
के.के