तुम्हारी कही हर बात, शायद मैं ना समझ पा रहा,
खुद को तेरी बातें समझने का क्यों यातना दे रहा,
शायद ये मेरी ख़ुदगर्ज़ी है, जो अवमानना सह रहा,
पर तेरा कहा हर शब्द मुझे, अपना सा लग रहा मुझे,
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें जो जुड़ी है तेरे साथ,
तेरी हर प्रताड़ना मुझे ना जाने क्यों प्यारा लगने लगा,
क्या ये मेरी हैं मजबूरी क्यों दिल खो बैठा निष्ठुर के हाथ,
जिसके दिल में प्यार नहीं, वो क्यों प्यार करेगी मुझसे,
जाने दो क्यों सोच रहा मैं निष्ठुर दिल के बारे,
दिल को पत्थर बना बैठी भावना नही तेरे दिल में,
नही डरता मैं ज़्यादा तेरे दिए किसी यातना से,
अवमानना की तो आदत बन गयी, जो प्यार तुमसे की.
के.के