दो शब्द जो दिल में हैं, सम्भालना हैं इसे,
वो शब्द ज़ुबान पे आ गयी, तो दोस्ती मेरी टूटेगी,
संभल कर जीने का अन्दाज़ सीखना है मुझे,
तारीफ़ करना हो, तो भी छुपा कर करना हैं मुझे,
दिल को शांत करने की कला सीखना हैं मुझे,
क्योंकि दिल तो बावरा है, नासमझी कर बैठेगा,
जिससे प्यार करता हूँ, उसकी खुशी तो समझ ए दिल,
उसे प्यार नही, तो एकतरफ़ा प्यार क्यों करता ये मेरा दिल,
शायद मेरा ये दिल है मेरे समझ पे हैं भारी,
इसीलिए शायद ये नादानियाँ करता हैं,
समझ को मज़बूत करना ही है अब कर्म मेरा,
दिल को भी सहना होगा अब उसके जाने का ग़म.
के.के
कुछ पंक्तिया जो मुझे भाती है:
तुम्हारे एक मुस्कुराहटपे हम जान लूटा बैठे,
जब हम थोड़ा संभल ही रहे थे जीने की राह पे,
तुम क्यों फिर से यूँ मुश्कुरा बैठी,