क्या कोई कमी थी चाहत में मेरे,
अपने जान से ज़्यादा चाहा मैं तुझे,
क्यों मुझे ना अपनाने की क़सम खाई तुमने,
क्यों दी तनहाई का तोहफ़ा तुम मुझे,
यूँ चाहत लिए दिल में जीता रहा मैं,
आस लिए शायद कभी समझोगी तुम मुझे,
सच्चाई की परख कभी करोगी तुम दिल से,
अपना बना कभी जन्नत का सुख दोगी मुझे,
शायद कुछ कर्म मैंने अच्छे किए कभी,
इसीलिए मुझे छोड़ कर दूर ना गयी तुम कभी,
बस अब जी रहा सिर्फ़ देख कर मैं तुम्हें,
तेरी इंकार से ज़ख़्मी हूँ पर दूर जना ना सह पाऊँगा मैं,
तेरे हर इंकार से ज़ख़्मी हुआ दिल मेरा,
दर्द सहता रहा दिल मरने के हद तक,
अब तो ईश्वर से यहीं हैं प्राथना मेरी,
मेरी जान को मुझसे दूर ना कर कभी.
के.के