क्यों उम्मीद में जी रहा ये मेरा बेचारा दिल,
क्यों नसीब खोज रहा अपने प्यार की मंजिल,
मंजिल पाने का भूल क्यों कर रहा मेरा दिल,
शायद पत्थर दिल को पिघलना हैं मुश्किल,
कभी कभी सोच हँसता हैं मेरे इस उम्मीद पे,
सोचता हैं क्यों रो रहा हैं बेचारा मेरा दिल,
क्या प्यार करना है गुनाह इस दिल का तुमसे,
या उम्मीद रखना कीं तुम स्वीकार लोगी कभी,
ये समझ लो की ये समझ हैं मुझमें,
मालूम हैं चाँद दिखता हैं सुंदर दूर से,
पर देखो चाँद पाने की बेवक़ूफ़ी कर ली ये दिल,
क्या चाँद पाना किसी से हैं मुमकिन,
कोशिश कर रहा हूँ चाँद की सुंदरता सिर्फ़ देखूँ,
भूला दूँ मैं चाँद पाने की तमन्ना इस दिल से,
बस दूर से कहीं निहारता रहूँ अपने चाँद को,
इसकी ख़ूबशूरती को सहेज रखूँ याद बना दिल में.
के. के.