मेरी पहचान बनकर मुझसे दूर क्यों हो खड़ी तुम,
मेरे दिल में समाकर मुझे मुझसे दूर क्यों की तुम,
इस आवारा दिल को लगाम लगाकर रखी हो तुम,
अब ये दिल करता है आवार्गी सिर्फ़ तेरे ही लिए,
मैं दूर तो सही पर जब भी याद करोगी तुम मुझे दिल से,
मेरा वजूद हर घड़ी साथ देगा अहसास दिला अपनापन का,
तेरी ख़ुशी के ख़ातिर अपने आवाज़ को क़ैद कर रखा खुद में,
अगर तेरा साथ होता तो खोज लेता अपनी ख़ुशियों भरी जहां,
शायद गलती हुई हैं मुझसे जो चाहा तुम्हें पागलों की तरह,
या शायद मेरी चाहत में थी कमी जो ना समझा पाया तुम्हें,
तुम्हें भूलने का इजाज़त देता नही मेरा ये मेरा पागल दिल,
तेरी याद में अश्रुओं को बहाना मंज़ूर मेरे इस दिल को,
चलों कोशिश करता हूँ की क़ैद कर लू खुद को खुद में,
अपने दिल की आवाज़ को दिल में छुपा लूँ चुप हो मैं,
शायद मेरी इस कोशिश से शकुन मिले तेरे दिल को,
क्या रखा हैं मेरी चाहत में जो क्यों प्यार करोगी तुम मुझसे.
के. के.