वो शब्द जो दिल के क़रीब हैं मेरे,
देखो नहीं बोल पा रहा हूँ मैं उससे,
देखता हूँ उसको दिल के आँखों से,
उसका चेहरा मैं नहीं भूल पा रहा दिल से,
वो दिखती है मुझे सिर्फ़ एक बार,
फिर क्यों रो रहा मेरी चाहत बार बार,
क्या मेरी चाहत सिर्फ़ कल्पना हैं मेरी,
या भरने को आई वो रस मेरे जीवन में,
उसे मालूम क्या मेरी दिल की चाहत है,
मेरी चाहत मेरे दिल पैमाने से छलक रहीं,
पर उसे खोने से डरता हैं ये दिल नादान,
पाने की चाहत में कही उसे मैं खो ना दूँ,
सुन ओ मेरे जीवन की ख़ुशी ज़रा,
अगर तुम पढ़ रही मेरे दिल की व्यथा,
पास आकर ज़रा बोल दे तुम मुझे,
मेरे चाहत को उसके मंजिल तक छोड़ दे,
कर ले इकरार बना अपना हो मेरे क़रीब,
हो जाने दे आत्मा को एक चाहे शरीर रहे दो,
खो जाने दो मुझे तुममें बना लो तुम मुझे अपना,
बरसो मेरी वीरान ज़िंदगी में भर दो रस ख़ुशी के.
के. के.