क्यों आज जीवन ने फिर से मेरी परीक्षा ली,
मृत्यु के क़रीब भेज कर मुझे वापस बुला ली,
शायद तन्हाई का दर्द सह नहीं पाया मेरा दिल,
तुम्हें खोजते खोजते देखो मैं मूर्छित सा हो गया,
फिर कुछ अपनों ने चीख पुकार मचाई,
ज़मीन से उठा मुझे आवाज़ लगाई,
तेरे सपनों में खोया मूर्छित सा मेरा तन,
देखो तन्हाई का दर्द सहने को उठ बैठा,
शायद थोड़ा और दर्द लिखा जीवन मे,
तन्हाई सहना बन गयी है मेरी मजबूरी,
क्योंकि तुम्हें किधर कभी फ़िकर था मेरा,
पर मैं अब जी रहा सिर्फ़ तुम्हें देने को ख़ुशी.
के.के.