स्वतंत्रा और अभिमान लिए, ऊँचाइयों के शिखर पे,
गगन को चूमने की चाहत, लिए उड़ता है परिंदा,
हर ख़ुशी पंखों तले, दुःख को झटक हवा में दे,
ऊँचे गगन उड़ चली, बनाने अपनी नयी पहचान,
अपने पथ पे अडिग, जीवन वृति में अग्रसर,
हर ऊँचाइयों को छू, सफलता की छाँव तले,
नज़र लगी अहेरी की, लगी उड़ान पे लगाम,
धीमे हुई वृति गति, तंज के चले अनेक बाण,
परिंदे की मयूशी देख, दिया ख़ुशी का दाना,
अहेरी ने क़ैद किया, परिंदे की ऊँची उड़ान.
कुणाल कुमार