रात्रि का ये अंधेरा, काली स्याह समान,
मेरे मौन जीवन , खोजे सूर्य यामनी प्रहर,
मेरे साँस की ये गंगा, बहे अनवरत हर पल,
डूबे हुए मेरे जीवन, जो खोजे नई सवेरा.
बढ़ता रहा जो पथ पे, सच के दीप संग,
संघर्ष भरा जीवन, लिए अभिलाषा जीने की,
लोक लाज का झूठआडम्बर, सबछोड़पीछे,
जीवनपथपेअग्रसर, लिएख़ुशियाँ मेरेसंग.
कही दूर से दिखे मुझे, एक किरण छोटी सी आशा,
झूठ आडम्बर की बाधा तोड़, जीवनपथ पे अग्रसर,
अन्यायी साथी संग, दिल में न्याय की उम्मीद सँजोए,
चलते रहा मैं अपने पथ पे, संग अभिलाषा जीने की.
निशा प्रहर अब डूबने को है, आगे जो नई सवेरा,
उदासी की स्याह डूबे, उद्गम हुई खुशियों भरी वेला,
जैसे सोना तपे कुंदन बने, बने येज़िंदगी सम्पूर्ण,
जीवन जीते रहो कर्म पथ पे, बनो मनुष्य परिपूर्ण.
के.के.