दो वक्त की कमाई से जो रोटी मुझे मिलती थी,
शकुन भरा जीवन और गहराई भरी मेरी नींद थी,
चैन भरा जीवन गुज़र रहा था ख़ुशियों के पल समेटे,
तभी कोरोना ने चुपके से मेरे जीवन में दस्तक दी,
काम काज सब छूटा हो गए घर बैठे बेकार बेरोज़गार,
मेहनत करने की ईक्षा थी दिल में पर मेहनत ना कर पाए,
अपनी फूटी क़िस्मत को कोस देख रहा अपने बच्चों को,
बैठे थे चुपचाप मगर चेरे पे थे उनके भूख की दर्द भरी छाप,
जो मेरी कमाई छूटी लगा जैसे मेरा तक़दीर हो मुझसे रूठी,
खाने को रोटी तो दूर भूखा पेट मेरी नींद भी साथ ना निभाई,
चैन तो जैसे खुद को मिटा लिया हो अदृश मेरे जीवन पथ से,
अब तो तेरा सहारा हैं मालिक पार लगा दे हमारा इस बंदी से.
के. के.
सुकून बड़ी चीज है
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सही फ़रमाया आपने
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