नक़ाब पहन कर यहाँ,
निकले है अनेक,
छोटी सी सच्चाई के थपेड़े से,
उतर गयी उनकी बेशर्मी भरी शराफ़त।
झूठ बिकता हैं यहाँ,
सच्चाई के नक़ाब पहनकर,
हैवानियत बिकता है यहाँ,
इंसानियत की नक़ाब पहनकर।
नक़ाब की खासियत भी हैं थोड़ी सी,
जैसे छिपा लिया करता हूँ खुद को,
हँसी के नक़ाब के पीछे,
दर्द दिखेगा सभी को तो हसेंगे जमाने के लोग।
कुणाल कुमार
Insta: @madhu.kosh