एक छोटा सा सपना,
जो देखा हैं मैंने दिल से,
दूर अनजाने सहर मे,
एक घर हो मेरे दिल की दर्पण।
घर जहाँ मिले प्यार,
और साथ अपनों का,
शांति भरा जीवन हो,
और तुम रहो सिर्फ़ बनकर मेरी।
करूँ ढेर सारी बातें,
बाँट लूँ बीते हर लम्हे,
सोच से आगे बढ़कर,
जी लूँ दिल की कहीं।
क्या थाम सकोगी मेरा हाथ,
बनकर मेरा हमसफ़र,
या तुम भी औरों की तरह,
सिर्फ़ सोचोगी अपने लिए।
कुणाल कुमार
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