चलते चलते राह मे,
ठिठक कर मैं रुक गया,
आज ना जाने क्यों,
साथ नहीं दिख रही हैं मेरी परछाई।
क्या मैं भूल गया उसे,
या वो भूल गयी है मुझको,
पर ये हक़ीक़त हैं मेरी,
परछाई बिना हैं मेरी ज़िंदगी अधूरी।
मेरी प्रतिबिम्ब ही हैं मेरी परछाई,
मेरी अच्छाई है मेरी परछाई,
मेरी सच्चाई है मेरी परछाई,
मैं ही तो हूँ बन मेरी परछाई।
कहाँ हो तुम क्यों दूर हो मुझसे,
क्या सच्चाई की प्रकाश नहीं पड़ी है मुझपे,
तुम्हें महसूस तो कर रहा दिल,
पर दूर कहीं है अभी मेरी मंजिल।
कुणाल कुमार
Insta: @madhu.kosh