अकेला हूँ दो बूँद अश्रु लिए,
ख़ुश होने की कोशिश कर रहा मै,
जी रहा तनहा जीवन,
दिल में सिर्फ़ आपकी अहसास लिए।
बैठा सोच रहा उस पल का मैं,
जिस पल में जीवन ने हँसा मुझ पर,
मेरे कुछ हसीन पल लिखा रब ने,
और यादें बना दी मेरे जीने की मक़सद।
ना जाने कब रब ने बदला रूप,
मुझे मिली तुम बन रब कि प्रारूप,
सुख दुःख की अनुभूति दे तुम मुझे,
पूजनीय बन बस गयी मेरे मन मंदिर।
तन्हाई क्यों बसी हैं मेरे दिल में,
क्यों दर्द भरी दूरी हैं मेरे रब से,
फिर भी आस्था है रब पे,
शायद समझ पाएगी मेरे दिल की कही।
कुणाल कुमार
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अति सम्वेदना पूर्ण पंक्तियां बातें करती सी ।
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धन्यवाद
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