मेरी अनकही बोल,
मेरे जज़्बात बयान करती है,
सोच कर ली खामोशी,
दिल की अहसास बयान करती है,
कभी कभी अपनी ख़ुशी,
दिल को सोचने को मजबूर करती है,
क्या चाहत साथ पाकर पूर्ण होती है,
या दूर रहकर अहसास उसे सम्पूर्ण बनाती हैं,
जो समझ सकते अनकहे बोल,
वो दिल के क़रीब हो जाते हैं,
बोल सुन कर समझने वाले तो,
यहाँ सैकड़ों यूँ ही मिल जाते हैं,
मैं भी आज यहाँ ख़ामोश हूँ,
दिल में उठे अंतर्द्वंद से परेशान हूँ,
मेरी ख़ुशी क्या खुद को समझ पाने में है,
या अहसास छिपा जाने में जैसे कमठ छिपे खुद में।
कुणाल कुमार
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