बेख़बर रहकर भी हम,
आपकी हर खबर रखते हैं,
खुद को जब देखते हैं आईने में,
सिर्फ़ आप ही मुझे दिखते हैं।
शायद ये मेरी तपस्या का फल है मेरा प्यार,
इसीलिए खुद को देखता हूँ मैं आपमें,
उम्मीद नहीं है दिल में और कुछ भी चाहने का,
क्योंकि आपकी ख़ुशी ही अब मेरा जीवन हैं।
नाराज़ मत हो आप कभी,
मुझे भूल कर आप जी लो अपनी ज़िंदगी,
आस्था फिर भी अडिग रहेगा मेरे प्यार पर,
क्योंकि आस्था है तो ईश्वर हैं वर्ना ईश्वर पत्थर की मूरत हैं।
कुणाल कुमार
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