कभी कभी दिल की कही,
दिल में ही घुट कर रह जाते हैं,
जिससे उम्मीद थी दिल को जब वो भूल जाते हैं,
तब खामोशी ही जीवन जीने की सबब बन जाते हैं।
कभी कभी ज़ुबान से फिसली आह,
दिल में उठे दर्द को बयान कर जाती है,
उनकी अहसास तो थी मेरे लिए सर्द भरी,
तो कहाँ से प्यार की गरमाहट हम अपने रिश्ते को दे पाते।
कभी कभी मेरे प्यार भरी अहसास में,
वो भी थोड़ा पिघल कर पास आ जाती,
फिर शायद अंदर का जातीय प्रांतीय अहसास,
सारे रिश्ते तोड़ उन्हें मुझसे बहुत दूर कर जाती।
कभी कभी सोचता हूँ मैं गम्भीर होकर,
क्या ये हैं उनकी सोच या हैं ये उनके दिल का खोट,
क्यों वो दिल्लगी तो किया करते है मुझसे,
जब प्यार निभाने की अनुमति नहीं है उनके दिल को।
कुणाल कुमार
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