अकेले ही भटक रहा मेरा दिल,
ना थी तमन्ना कुछ पाने की,
यादों की गलियों में उसे भूल,
अब तो तमन्ना थी अकेले जिए जाने की।
सागर सा है मेरा प्यार,
अब अंदर ना आना तुम मेरे कभी,
क्योंकि सागर कि फिदरत है ये,
किनारे कर देता जो ना होता उसका अपना।
आगे लिखता हूँ…
क्यों ना भूल सकता उसे दिल,
जिससे प्यार किया उसने हर दिन,
पर कुछ समय का प्यार था ये,
वो तो कही और ढूँढ रही थी अपनी मंजिल।
आसानी से मिला था उसे ये दिल,
इसीलिए भूल गयी थी वो अपनी मंजिल,
उसे क्यों याद करेगा अब मेरा दिल,
जो ख़्वाबों में किसी और के साथ बाँट रही थी अपनी ज़िंदगी।
आख़िर में…
कुछ पंक्तियाँ जो लिखी मैंने,
कोशिश की यादों को शब्द दे सकूँ,
पढ़ तो इसे सभी सकते है,
पर इसे समझना हैं बहुत मुश्किल।
ये शब्द नहीं ये मेरे अश्रु है,
जो सूख कर भाव बन गए हैं,
इन भावों को पिरोकर मैंने,
लिखी है ये लेखनी सिर्फ़ आपके लिए।
कुणाल कुमार
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Kya baat
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धन्यवाद
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