कितनी रातें मैं ना सोया था,
अपने अश्रु से बिस्तर भिगोया था,
बस आपकी यादें थी जीने का सहारा,
और ना लालसा थी दिल में कुछ पाने की।
कभी दिल में हसरतें थी अनेक,
आपके साथ जीने का इरादा था मेरा नेक,
पर शायद आपको ये ना था मंज़ूर,
कर लिया अपने दिल को मुझसे बहुत दूर।
अब तो जीता हूँ सिर्फ़ अपने लिए,
आपको भूलने की कोशिश करता हूँ अनेक,
पर शायद मैं ये भूल गया ना जाने क्यों,
क्योंकि आप तो बन गयी हो मेरे ख़्वाबों में मैं।
थोड़ा ख़ुदगर्ज़ सा हो गया हैं ये दिल,
अब तो जीता हैं दिल देखने को आपकी ख़ुशी,
हर एक स्वाँस लेता हूँ आपके लिए,
अब तो मौत ही मुझे मेरी स्वाँस से अलग कर पाएगी।
कुणाल कुमार
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