कौन कहता है,
मैं नहीं हूँ तुम्हारे दिल के क़रीब,
ज़रा अपनी परछाई तो देख लो,
पाओगी उसमें अक्स तुम मेरी।
साथ निभाने का वादा,
जो किया था मैंने अपने दिल से,
अब प्यार करो या ना तुम,
पर पाओगी मुझे अपने दिल में।
नकार सकती हो तुम मेरे वजूद को,
अपने सोच के परिभाषा से,
पर क्या निकाल सकती हो अपने दिल से,
जहां जगह बनाई है मैंने निश्चल प्यार से।
कोई अपेक्षा नहीं, कोई अभिलाषा नहीं,
बस हँसता रहता हूँ तुम्हारी याद दिल लिए,
पाने की चाहत उन्हें होती है,
जिन्हें विश्वास नहीं होता अपने प्यार पे।
तुम ख़ुश रहो बस यही तमन्ना है मेरी,
दुख छू ना पाए तुम्हें यही इक्षा है अब मेरी,
तुमसे दूरी का अहसास नहीं है अब मुझे,
जब तुम्हारी याद आती है, पता हूँ तुम्हें खुद में।
चाहे लाख बुरा कहे कोई मुझे,
अपनी सफ़ाई नहीं दूँगा कभी मैं तुम्हें,
क्योंकि अगर कभी प्यार किया है तुमने मुझसे,
तो विश्वास ज़रूर होगा मुझपे।
कुणाल कुमार